Tuesday, March 17, 2009

थोड़ा सा रूमानी हो जाए

उन दो निगाहों के साए
जब से इस ज़िन्दगी मे आए
सो न पाऊ मैं इस डर से अब कभी
सपना ये टूटे गर आँख लग जाए

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